देवताओं की भूमि ओरण को बचाने धरने पर बैठे विधायक रविंद्र सिंह भाटी, जानिए क्यों कीमती है यह ओरण

देवताओं की भूमि बचाने के लिये अब विधायक रविंद्र सिंह भाटी धरने पर बैठ गये हैं। देवताओं की भूमि ओरण भूमि को कहते हैं जिसके लिये पर्यावरण संरक्षण के साथ सामाजिक जिम्मेदारी की भूमिका भी निभाई जाती है।

Nov 18, 2024 - 19:54
Nov 18, 2024 - 22:49
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देवताओं की भूमि ओरण को बचाने धरने पर बैठे विधायक रविंद्र सिंह भाटी, जानिए क्यों कीमती है यह ओरण

जयपुर।

पर्यावरण को सुरक्षित रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। लेकिन बीते कुछ सालों में पर्यावरण को फैक्ट्रियों और औद्योगिक क्षेत्रों की मांग के कारण लगभग तहस नहस कर दिया है। राजस्थान में ओरण भूमि के लिए अभियान चलाया जा रहा है। ओरण भूमि को कुछ निजी व्यवसायी अपने स्वार्थ के लिए उपयोग में लेना चाहते हैं। लेकिन अब अलग-अलग जगह से इसके खिलाफ आवाज़ उठ रही है। हाल ही में शिव विधायक रविन्द्र सिंह भाटी ओरण बचाने की इस मुहिम से जुड़े और धरने पर बैठ गए। 

क्या है ओरण

पशु-पक्षियों के घर पर उद्योगपतियों की ऐसी नजर पड़ी की अब पशु-पक्षियों की भूमि के लिए भी आंदोलन करने की जरूरत आ गई है। ओरण भूमि को आम भाषा में पशु-पक्षियों का घर भी कह सकते है। ओरण का अर्थ होता है अरण्य या वन क्षेत्र। ये एक ऐसा स्थान होता है जो सिर्फ पशु पक्षियों के लिए होता है। इसमें किसी प्रशासन का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। ओरण को भगवान की जमीन तक की संज्ञा दी गई है। इस भूमी पर जुताई नहीं की जाती और ना ही कोई इस भूमी पर घर बनाकर रहता है। ये भूमि सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में एक जैसी ही नज़र आती है। इसी के साथ इसे ऐसे समझे तो ओरण मतलब 10 बीघा से 1.25 लाख बीघा तक का छोटा जंगल। मारवाड़ में हर तीन गांव पर आज भी एक ओरण है। मान्यता है कि ओरण में न तो पेड़ या डालियां काटी जा सकती हैं और न ही पेड़ से गिरी लकड़ियां कोई जलावन के लिए उठा सकता है। यहां तक कि अगर इसके अंदर से गाय-भैंस का गोबर भी नहीं उठाया जाता।

जनसंख्या के अनुपात में कम हैं जंगल

राजस्थान में 1,100 से ज़्यादा प्रमुख ओरण हैं, जो करीब 1,00,000 हेक्टेयर ज़मीन को कवर करते हैं। वन विभाग की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था, जिसमें ओरण भूमि का पूरा विवरण दिया गया था। इस नोटिफिकेशन में अधिकतर ओरण भूमि पश्चिमी राजस्थान के जिलों की है। इसमें सबसे अधिक 2,02,130 हेक्टेयर जैसलमेर जिले में, 82,997 हेक्टेयर बाड़मेर में, 31,669 हेक्टेयर फलोदी में, 18,301 हेक्टेयर बालोतरा में, 9,588 हेक्टेयर जोधपुर में, 13,135 हेक्टेयर बीकानेर में तथा 2582 हेक्टेयर नागौर जिले में ओरण भूमि है। इसी प्रकार पश्चिमी जिलों में भी हजारों बीघा ओरण है। ओरण जैसे प्रयास अधिक किए जाने की जरूरत है जिससे पर्यावरण संतुलन बनाए रखा जा सके। जयपुर में 76,85,041 जनसंख्या पर 552.76 जंगल हैं जबकि जरूरत 19,277 जंगल की है। इसके लिए 5 करोड़ पेड़ों की जरूरत है। जोधपुर में 42,76,374 जनसंख्या है यहां पर 107.78 वर्ग किलोमीटर में जंगल फैला हुआ है जबकि जरूरत 10,727 वर्ग किलोमीटर जंगल की है। ऐसी ही स्थिति अन्य जगहों पर भी है।

ओरण संरक्षण संघर्ष का इतिहास बेहद पुराना

ओरण के निर्माण और संरक्षण की जिम्मेदारी पूरी तरह से समुदाय के स्तर पर की जाती है। राजस्थान में जिस तरह से ओरण नाम प्रचलित है वैसे ही हरियाणा में तीरथवन, समाधि वन तथा गुरुद्वारा वन, असम में थान, मिजोरम में मावमुण्ड, सिक्किम में गुंपा, तमिलनाडु में कोकिलनाडु, हिमाचल में देववन, महाराष्ट्र में देवराई, अरुणाचल में गुंपा और उत्तराखंड में देववन के नाम से इस वनभूमी को जाना जाता है। मेघालय में तो ग्रामीण अपने जूते खोलकर ही ओरण भूमि में अंदर प्रवेश करते है। राजस्थान का बिश्नोई समाज तो अपने पर्यावरण संरक्षण के लिए दी हुई कुर्बानियों और कार्यों के लिए विख्यात है।

बेटी की शादी कराने की भी जिम्मेदारी लेता था ओरण

गांवों के लोगों को जब अपनी पुत्री की शादी करनी होती थी तो वो ओरण क्षेत्र को प्राथमिकता देते थे। उनकी मान्यता थी कि ऐसा करने से उनकी लाडली और उसकी संतानें ओरण के जल एंव पशु-संसाधनों की समृद्धि जीवन पर्यन्त भोग सकें। किसी अनिष्ट के भय की परम्परागत भावना के कारण इस ओरण से वृक्ष या लकड़ी तो दूर, वनस्पति की एक पत्ती, फल या फूल तक तोड़ने से ग्रामीण भय खाते थे।

जैसलमेर में ओरण के लिए महिलाएं उतरीं सड़कों पर

जैसलमेर के  रामगढ़ इलाके के पारेवर गांव की ओरण की जमीन को वंडर सीमेंट को अलॉट करने पर विरोध किया जा रहा है। विरोध प्रदर्शन के दौरान गांव की महिला-युवतियों ने सैकड़ों की तादाद में 2 दिन में 70 किमी की पदयात्रा कर जैसलमेर पहुंच कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा। ग्रामीणों ने बताया कि अलॉटमेंट खारिज करके प्रशासन ओरण की जमीन को राजस्व रिकॉर्ड में ओरण के नाम से दर्ज करवाएं।

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