Dev uthani ekadashi : ये देवउठनी एकादशी की असली कहानी, इसलिए होती हैं आज शादी
Dev uthani ekadashi : आज देव उठनी एकादशी का पर्व मनाया जा रहा है, इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह शयन के बाद जागृत होते हैं और इसी के साथ चातुर्मास का अंत भी हो जाता है।

जयपुर।
Dev uthani ekadashi : वैसे तो हिंदु धर्म में सभी एकादशियों का अपना अलग महत्व होता है।परंतु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को काफी महत्वपूर्ण बताया गया है। कहा जाता है की आज ही के दिन भगवान विष्णु चार माह की निद्रा के बाद जागते है। चार माह के बाद आज से ही सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते है। देव जागरण या देवउत्थान होने के कारण इस दिन को देवोत्थान एकादशी भी कहते है। आज ही के दिन माता तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह भी कराया जाता है। आज से शादियों का भी आरंभ हो जाता है।
क्या करना चाहिए एकादशी के दिन
आज के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा अर्चना की जानी चाहिए। साथ ही एकादशी के दिन सात्विक भोजन भी करना चाहिए। कहा जाता है की एकादशी के दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए एवं किसी की भी बुराई नहीं करनी चाहिए अन्यथा माता लक्ष्मी नाराज हो जाती है।
देवउठनी एकादशी की व्रत कथा
कहा जाता है की एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। वहां की प्रजा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। लेकिन रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा। उस व्यक्ति ने उस समय हां कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे खाने के लिए अन्न दे दो।
राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, फिर भी वह अपनी बात पर अड़ा रहा और अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है।
उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे और प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने हर रोज की तरह भोजन बनाया और भगवान को शाम तक पुकारता रहा, फिर भी भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।
फिर भी भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्याग ने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
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