मिसाल बनी बेटियां: हौंसला ऐसा कि पहले खुद का बाल विवाह रूकवाया और फिर दूसरों का
यूनिसेफ की युवा पहल से ग्रामीण क्षेत्रों की बालिकाएं सशक्त हो रही हैं । इसी के साथ वो अब ग्रामीण इलाकों में बच्चियों में जागरूकता भी फैला रही हैं।

जयपुर।
यूनिसेफ की 'युवा पहल' से ग्रामीण इलाकों की बेटियां दूसरों के लिए मिसाल बन रही है। इन बेटियों का हौंसला ऐसा है कि पहले इन्होंने अपने लिए लड़ाई लड़ी और अब दूसरों के लिए लड़ाई लड़ रही है। जी हां, फ्यूचर सोसायटी की ओर से टोंक में विशेष कार्यशाला आयोजित हुई, जिसमें जयपुर के वरिष्ठ पत्रकारों ने बच्चियों से चर्चा की तो इन बेटियों की कहानी जज्बे और हौंसले से भरी थी।
सोयला गांव की रहने वाली अन्य पिछड़ा वर्ग की वसुंधरा प्रजापत इन दिनों यूनिसेफ के माध्यम से बच्चियों के जन जागरण का काम कर रही है। उन्होंने 12 साल की उम्र में अपना बाल विवाह रोका। इसके बाद अब तक कई नाबालिग बेटियों का विवाह रूकवा चुकी है। ना केवल उन्होंने बाल विवाह रूकवाया, बल्कि अब जयपुर में अपने पिता के साथ रहकर बीए-बीएड का कोर्स कर रही हैं। वसुंधरा ने बताया कि वह जब छोटी थी तो उनकी बड़ी बहन के साथ उनका भी विवाह करने की योजना उनके दादाजी ने बनाई। जब उन्होंने विरोध किया तो शुरू में वह नहीं मानी, लेकिन माता-पिता और दादाजी को समझने में कामयाब रही। इसके बाद उन्होंने गांव में कोरोना के समय में अपने दादाजी के नुक्ते यानी मृत्युभोज के कार्यक्रम को रोका। इसके लिए गांव में उनका बहिष्कार तक किया गया, लेकिन यह साहसिक बच्ची यही नहीं डटी। उन्होंने गांव में सेनेटरी पैड सप्लाई कराने की व्यवस्था की और उसके निस्तारण के लिए भी मशीन की व्यवस्था कराई। वसुंधरा बताती है कि एक समय जिन्होंने बहिष्कार किया था, वे ही लोग अब सम्मान करते हैं तो बहुत अच्छा लगता है।
दूसरों को उड़ान दे रही बेटियां
टोंक जिले के गांव देवपुरा, शोयला और डारडा तुर्की की आधा दर्जन अनुसूचित की मासूम बच्चियों ने अपना बाल विवाह रोका और विपरीत परिस्थितियों में अपने परिवार से लड़ाई लड़कर विषम आर्थिक परिस्थितियों में अपनी जिंदगी को बनाने में संघर्ष किया और पढ़ाई जारी रखी। इन बच्चियों ने टोंक की शिव शिक्षा समिति के परियोजना अधिकारी सीताराम शर्मा के सहयोग से ये सभी काम पूरे किए हैं।
सायला गांव की अनुसूचित जाति की नौरती बैरवा दिव्यांग है, उसने अपना बाल विवाह रोका और विपरीत परिस्थितियों में अपने घरवालों से संघर्ष कर पढ़ाई जारी रखी। वह अपने गांव की स्कूल में 12वीं की छात्रा है। घर की आर्थिक स्थिति खराब है, फिर भी उसने अपनी पढ़ाई को जारी रखा है। वहीं, देवपुरा गांव में रहने वाली ममता बैरवा, निशा ने भी अपने हौंसलों से अब दूसरों को उड़ान भरना सिखा दिया है।
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